महिलाओं की ‘उन दिनों’ की परेशानी का ठोस समाधान

महिलाओं की ‘उन दिनों’ की परेशानी का ठोस समाधान

सेहतराग टीम

अक्षय कुमार की फ‍िल्‍म पैडमैन ने इस देश में महिलाओं के माहवारी की समस्‍या को बातचीत के केंद्र में भले ही ला दिया हो मगर आज भी ये एक कटु सत्‍य है कि दुनिया की सबसे तेज गति से विकास कर रही भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में देश की आधी आबादी में से में साढ़े पैंतीस करोड़ महिलाएं मासिक धर्म की अवस्‍था में हैं और उनमें से सिर्फ 12 फीसदी यानी करीब सवा चार करोड़ ही सैनिटरी पैड का इस्‍तेमाल करती हैं। बाकी अस्‍वास्‍थ्‍यकर कपड़े का इस्‍तेमाल करती हैं और इसके कारण कई घातक बीमारियों की चपेट में आने का जोखिम उठाती हैं।

हालांकि अब सरकारों ने स्थिति में गुणात्‍मक बदलाव लाने की दिशा में कदम उठाने शुरू किए हैं और इसी के तहत पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 30 दिसंबर को ओडिशा के भुवनेश्‍वर में ‘उज्ज्वला सैनिटरी नैपकिन’ पहल की शुरुआत की। इस मौके पर उन्‍होंने कहा कि ओडिशा में 2.25 करोड़ महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने में अभी समय लगेगा मगर इस दिशा में प्रयास शुरू हो गए हैं।

‘उज्ज्वला सैनिटरी नैपकिन’ की पहल के तहत ओडिशा के 30 जिलों में 93 ब्लॉक को कवर किया जाएगा। तेल विपणन कंपनियां (ओएमसी) 2.94 करोड़ रुपये की लागत से सामान्य सेवा केंद्रों (सीएससी) में सैनिटरी पैड की 100 विनिर्माण इकाइयों की स्थापना करेंगी।

इस मिशन का लक्ष्य महिला स्वच्छता एवं स्वास्थ्य पर महिलाओं को शिक्षित करना, कम लागत वाले पर्यावरण के अनुकूल सैनिटरी पैड तक उनकी पहुंच बढ़ाना और ग्रामीण रोजगार एवं अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है।

धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि कम से कम 10 महिलाओं को प्रत्येक केंद्र पर रोजगार मिलेगा। उनमें से चार से पांच महिलाएं नैपकिन बनाने जबकि अन्य उसे बेचने का काम करेंगी। केंद्रीय मंत्री ने इस पहल के जरिये महिलाओं को रोजगार के अवसर मिलने का विश्वास जताते हुए कहा कि इसका लक्ष्य ओडिशा में 2.25 करोड़ महिलाओं को आर्थिक रूप से अधिकार संपन्न और आत्मनिर्भर बनाना है।

सैनिटरी नैपकिन के उपयोग को एक जन आंदोलन बनाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एफएफएचएस) के अनुसार, ओडिशा में केवल 33.5 प्रतिशत महिलाएं ही सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं।

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